"Transforming Love and Passion into Verses: A Journey through Hindi and Urdu Poetry"
कवि के जज्बाती कलम से…
मेरे साठवें सालगिरह पर इशारत मेरी पहली पुस्तक काव्य संग्रह के हौसला अफ़जाई हेतू तमाम पाठकों का
मैं तहे दिल से अपना मश्कूर अभिव्यक्त करता हुँ। हाँ, कुछ आलोचक भी थे जिन्होंने मेरी उर्दू लियाकत पर
भले ही मज़ाक में लिया हो पर अट्टाहास जरूर किया था। पर सदाकत में पाठकों की अजहारख्याल (टिप्पणी)
सर आँखों में।
‘हमारी द्वितीय संकलन ‘तहरीर-ए-चाँद’ हम अपनी तिरेसठवीं सालगिरह पर आपके दस्त-ए-गुल में पेश-ए-
खिदमत करते हैं। हर मखलुकी का अध्ययन कर अपनी राय-ए-फताना हमें अवश्य पेश करें। हम त्रुटियों को
सुधारने की पुरज़ोर कोशिश अवश्य करेंगे।
कविता या शायरी हृदय के महासागर में उसकी उत्ताल तरंगों पर तैरने वाली जहाज़ की तरह है और कहते हैं
कि गीत इसी समुद्र में भीतर-भीतर चलने वाली पनडुब्बी का प्रचलन हैं। हम जब कभी गीत, गज़ल या
कविता की मखलुकियाँ करते हैं तब हमें महसूस होता हैं मानों भीतर ही भीतर हम एक ही सम्त की ओर
अग्रसर होते जा रहे हैं। एक अजीब से गम-ओ-खुशी का एहसास की अनुभूति तथा हुसुलियत होने लगती हैं।
प्रेम में वस्ल (मिलन) का महत्व तो होता ही हैं किन्तु हिज़्र (विरह) भी कम महत्व नहीं रखता। मेरी कविता
या गज़ल में जहाँ मिलन के दृश्य है, विरह की अनुभूतियाँ और दशायें है, अध्यात्म हैं, दर्शन हैं, जीवन के
तथ्य हैं, जीवन की विसंगतियाँ हैं- वहीं इन कविताओं या गज़लो की कलात्मकता भी अपने नये-नये
आयामों को दर्शाती है।
इस पुस्तक में जो भाषा हैं वह भावों की अनुगामिनी है, वह सहज, सरल, और प्रसाद-गुण सम्पन्नता के
अनुकूल भी हैं। यह मेरी अपनी धारणा है।
अगर शब्दों के इतिखाब (चयन) में त्रुटियाँ हो या मेरे उर्दू शब्दों को समझाने में आप पाठगणों को मुहाल
(कठिन) महसूस हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। वैसे में ने इस दूसरी संग्रह में न्यूनतम से न्यूनतम उर्दू शब्दों का
इतिखाब करने का प्रयत्न किया है। करें क्या? उर्दू की लियाकति दिन प्रतिदिन सर चढ़ कर बोलने लगी हैं।
मशहूर शायर तथा गीतकार गुलज़ार साहिब का वो कथन मेरे ज़हन में उतरता जा रहा है कि नज़्मों की
जुबान उर्दू है पर लिखाई हिंदी। उर्दू अगर दोनों लिपियों में लिखी जाय तो क्या हर्ज़ है?
मश्कूर! मश्कूर!! मश्कूर!!!
चंद्र प्रकाश गोइन्का
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