शब्दों का मजमा जमा है अभिव्यक्ति का जलसा हो जैसे यहाँ लेखन नहीं दिल परोसा है मैंने ये मंथन है विचारों का, रौशनी से परछाई तक ये मुलाक़ात है मेरी खुद से खुद की ये पहचान है मेरी, जिसने मुझे ढूँढा है ये अक्स है मेरा जो आईने में नहीं दिखता ये तो रात के सन्नाटे में, पन्ने पे उतर आया है ये कला है, भाव है , आत्मनिरीक्षण है ये धरोहर है, अनन्य है, सफर है और गंतव्य भी ये आगंतुक भी है और आकांशी भी ये मेरी किताब है किरण ये किताब एक संकलन है मेरी भावनाओं का , मेरे दर्द और कचोट का, एक श्रद्धांजलि है मेरी माँ के नाम, मेरी इच्छाओं की परिकाष्ठा का , प्रकृति की शोभायमान प्रेरणात्मक सुंदरता का, एक झरोका है मेरे अंतर्मन का मैं समर्पित करती हूँ उसे जो सदैव रही है मेरी प्रेरणा , मेरी आकांशा मेरी माँ किरण
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